कांटों पर लोट लगाने की परंपरा
बैतूल के रज्जढ़ समाज के लोग इसे निभाते हैं, खुद मानते हैं पांडवों का वंशज
बैतूल। बैतूल। स्वयं को पांडवों का वंशज मानने वाले रज्जड़ समाज के लोग आज 21 वीं सदी में भी वर्षों पुरानी परंपरा का बखूबी निर्वहन करते चले आ रहे हैं। इस समाज के लोग कांटों की सेज बनाकर उस पर खुशी-खुशी लोटते हैं। उनका ऐसा मानना है कि इस तरह की परंपरा का निर्वहन होने से कोई बाधा नहीं आती है। वैसे यह लोग मूलत: मन्नत पूरी कराने और बहिन की विदाई करने के लिए यह आयोजन करते हैं।
अगहन मास में होता है आयोजन
प्राप्त जानकारी के अनुसार बैतूल के सेहरा गांव में हर साल अगहन मास पर रज्जड़ समाज के लोग इस परंपरा को निभाते हैं । इन लोगों का कहना है कि हम पांडवों के वंशज हैं । पांडवों ने कुछ इसी तरह से कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा दी थी । इसीलिए रज्जड़ समाज इस परंपरा को सालों से निभाता आ रहा है। इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देता हैं।
होते हैं भगवान खुश
ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है । इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस कार्यक्रम के बाद वे अपनी बहिन कि विदाई करते है । रज्जड़ समाज के ये लोग पूजा करने के बाद नुकीले कांटों की झाड़ियां तोड़कर लाते हैं और फिर उन झाड़ियों की पूजा की जाती हैं। इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं।
यह है कहानी
इस मान्यता के पीछे एक कहानी यह है कि एक बार पांडव पानी के लिए भटक रहे थे। बहुत देर बात उन्हें एक नाहल समुदाय का एक व्यक्ति दिखाई दिया। पांडवों ने उस नाहल से पूछा कि इन जंगलों में पानी कहां मिलेगा। लेकिन नाहल ने पानी का स्रोत बताने से पहले पांडवों के सामने एक शर्त रख दी। नाहल ने कहा कि, पानी का स्रोत बताने के बाद उनको अपनी बहन की शादी भील से करानी होगी।
नाहल से करा दी थी शादी
पांडवों की कोई बहन नहीं थी इस पर पांडवों ने एक भोंदई नाम की लड़की को अपनी बहन बना लिया और पूरे रीति-रिवाजों से उसकी शादी नाहल के साथ करा दी। विदाई के वक्त नाहल ने पांडवों को कांटों पर लेटकर अपने सच्चे होने की परीक्षा देने का कहा। इस पर सभी पांडव एक-एक कर कांटों पर लेट और खुशी-खुशी अपनी बहन को नाहल के साथ विदा किया।
कांटों पर लेटकर देते हैं परीक्षा
रज्जड़ समाज के लोग अपने आपको पंड़वों का वंशज कहते हैं और कांटों पर लेटकर परीक्षा देते हैं ।परंपरा पचासों पीढ़ी से चली आ रही है, जिसे निभाते वक्त समाज के लोगों में खासा उत्साह रहता है । ऐसा करके वे अपनी बहन को ससुराल विदा करने का जश्न मनाते हैं। यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलता है और आखिरी दिन कांटों की सेज पर लेटकर खत्म होता है।
इनका कहना…
हमारे यहां ये रज्जड़ समाज है अपने आप को पांडव का वंशज बताते है और ये त्योहार मनाते इसमें ये लोग कांटो की झाड़ियों को बिछा कर उस पर लेटते है।
दयाल पटेल,परम्परा के जानकार, सेहरा
हम पांच पांडवों के वंशज है बहिन की विदाई के लिए ये आयोजन होता है नाचते है गाते है और कांटो पर लेटते है।
फत्तू बमने, बुजुुुर्ग, सेहरा
हमारे देव हमारे ऊपर आते हैं और हम बेर के कांटों की जो गादी बनाई जाती है उसे पर लेटते हैं हमें कांटे नहीं चुभते हैं।
रोहित, सेहरा
मेडिकल की दृष्टि से यह बिल्कुल जायज नहीं है मुख्य रूप से इस में कई तरह के संक्रमण और बैक्टीरियल इनफेक्शन होते हैं जो काफी घातक है जानलेवा भी होते इस पर रोक लगनी चाहिए।
डॉ. रानू वर्मा, आरएमओ, जिला अस्पताल, बैतूल