Thu. Jan 23rd, 2025

जानिये क्या हुआ था मुलताई में 12 जनवरी 1998 को जिसमें कांग्रेस की दिग्विजसिंग सरकार ने 24 किसानों को गोलियों से भून दिया था

मुलताई गोली कांड की 27वीं बरसी पर विशेष
यादों के झरोखों से गगनदीप खेरे

लम्बे समय से बार-बार देश में किसान आंदोलन होते रहे है। इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है, कि देश की आजादी के 77साल बाद आज भी देश के अन्नदाता को अपने हक की रोटी के लिए आंदोलन करना पड़ता है, लाठीया खाना पड़ता है, गोली भी खाना पड़ता है। कभी मंदसौर में किसान गोली खाता है तो कभी मुलताई में गोलियों से किसानों की छातियों को छलनी कर दिया जाता है।

तो कभी दिल्ली बार्डर पर आंदोलन कर रहे किसान गोली के शिकार होते है लेकिन किसानों की हालत कभी नहीं सुधरती। सरकारे आती जाती है पर किसानों की समस्या जस की तस रह जाती है। भाजपा के शासन में किसान मंदसौर में गोली खाता है, तो कांग्रेस के शासन में किसान मुलताई में गोली खाता है, तो कभी दिल्ली बार्डर पर गोली खाता है लेकिन किसानों की समस्या जहां की तहा रह जाती है। 12 जनवरी 1998 को मुलताई में 24 किसान पुलिस की गोली से मारे गये थे। आज से 27 साल पहले हुए विश्व प्रसिद्ध किसान आंदोलन के घटनाक्रम से गगनदीप खेरे यादों के झरोखों से आपको घटनाक्रम से रूबरू करा रहा हु । जिससे सबक लेकर प्रशासन कोई भी चुक करने से बच सकता है।

ताप्ती समन्वय : 12 जनवरी 1998 देश के गौरवमई इतिहास में एक काला सफा जोड़ गया। जिसमें आजाद हिन्दूस्तान की सरजमीं पर पुलिस की गोली से 24 किसान मारे गए, सैकड़ो घायल हुए जो पूरे विश्व में निंदा का विषय बना।


इस समय पूरे देश में किसान आंदोलनों की बयार बह रही है। आज 12 जनवरी 202,5 में एक बार फिर मैं पाठकों को मुलताई किसान आंदोलन से रूबरू करवा रहा हूं, जिससे आने वाले समय में मुलताई के किसान आंदोलन का इतिहास राजनेताओं और प्रशासन के लिए एक सबक साबित हो और भविष्य में प्रशासनिक चूक के कारण देश में कभी भी कही भी मुलताई गोलीकांड जैसी परिस्थिति निर्मित न हो।


मुलताई में जिस समय किसान आंदोलन हुआ उस समय किसानों के साथ सरकार ने भी कुछ बीज अन्याय अत्याचार के बीच बोए थे। किसानों की फसल अत्याधिक बारीश के कारण खराब हो गई, लेकिन सरकार की फसल जमकर आई। अन्याय अत्याचार, शोषण प्रशासनिक तानाशाही चरम सीमा पर पहुंची। इतिहास अपने आप को दोहराता है। जब-जब भी अन्याय अत्याचार एक सीमा से आगे बढ़ता है, तब-तब क्रांती हुई है।


मुलताई कस्बे में भी ऐसा ही हुआ। मुलताई में प्रशासन के अन्याय अत्याचार की आंधी आई जिसका परिणाम मुलताई किसान आंदोलन के रूप में देखने को मिला। मुलताई का किसान आंदोलन जिसे किसानों एवं सरकार के बीच फसल के मुआवजे की लड़ाई समझा गया है। वास्तव में वह लड़ाई किसानों एवं सरकार की नही अपितू वह लड़ाई वास्तव में खाली हाथ और रोजगार के बीच खाली पेट और भूख की लड़ाई थी। मुलताई के किसानों की फसल अत्यधिक बारीश एवं गेरूआ रोग के कारण खराब हो गई। आम किसान कर्ज के बोज से लद गए। सरकारी कर्मचारी द्वारा अतिवर्षा एवं गेरूआ रोग से फसल खराब होने के गलत सरकारी आंकड़े शासन को भेजे गए। जिसके कारण किसानों को सरकारी सहायता प्राप्त नहीं हो सकी। उसी समय विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा कड़ाई से ऋण वसूली करने का प्रयास होने लगा। जिसने किसानों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी।

तभी यह बात खुलकर सामने आई की बीजों के मुल्य के साथ उन बीजों से उत्पन्न होने वाली फसलों के बीमे की प्रिमियम की राशि भी सरकार द्वारा ले ली जाती है। फसल खराब हो गई है इसलिए सरकार द्वारा मुलताई क्षेत्र के किसानों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसी मुद्दे को लेकर उन्हे आश्वासन दिया गया। शनै: शनै: समय गुजरा लेकिन (ढाक के वही तीन पात) आश्वासन आश्वासन ही रहा पूरा नहीं हुआ। नाराज किसान सतारूढ़ कांग्रेस नेताओं से व विपक्षी पार्टी भाजपा के स्थानीय नेताओं से मिले एवं आंदोलन की गुहार करने लगे थे। लेकिन कांग्रेस ,भाजपा नेताओं ने इन किसानों का साथ देना तो दूर इन किसानों के जख्मों पर सद्भावना का मल्हम लगाना भी जरूरी नहीं समझा। जिसका परिणाम स्थानीय किसानों में नाराजी से बढकऱ आक्रोश में बदलने लगा। और क्षेत्र के स्थानीय किसानों ने मुलताई के घटिया राजनितिज्ञों को सबक सिखाने की मन में ढान ली। उसी समय मुलताई के पूर्व विधानसभा उम्मीदवार डॉक्टर सुनीलम का पदार्पण मुलताई में हुआ।

ज्ञात हो डॉक्टर सुनीलम पूर्व विधानसभा चुनाव में मुलताई विधानसभा क्षेत्र से अपनी जमानत जप्त करवा चुके थे। लेकिन क्षेत्र में सभी को यह अच्छी तरह से मालूम था कि डॉक्टर सुनीलम मजदूरों किसानों के विश्व स्तर के संगठनों से जुड़े है। और समय-समय पर बैतूल जिले में गरीबों के हक के लिए आंदोलन करते आए है। आक्रोशित किसानों ने डॉक्टर सुनीलम से सम्पर्क साधा। डॉक्टर सुनीलम ने किसानों की समस्या को ध्यान से सुना, किसानों के जख्मों पर सद्भावना का मल्हम लगाया। जिसके कारण आम किसानों में डॉक्टर सुनीलम की एक अलग छबि बन गई। डॉक्टर सुनीलम ने इन किसानों को आंदोलन का रास्ता सुझाया तथा प्रारंभ करने की औपचारिक्ताओं से अवगत कराया तथा आश्वासन दिया कि किसानों द्वारा किसान आंदोलन की औपचारिक्ता पूर्ण हो जाने पर जब भी वह धरना रैली या अन्य कार्यक्रम आयोजित करेंगे, चाहे वह कही भी रहे सूचना मिलने पर आवश्यक रूप से मुलताई आकर किसानों का साथ कंधे से कंधा मिलाकर देंगे। स्थानीय किसानों ने एक किसान संघर्ष समिति बनाकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। जिसमें अत्याधिक वर्षा के कारण खराब हुई फसलों के मुआवजे की मांग की गई। मांग पूरी न होने पर धरना भूख हड़ताल, चक्का जाम की चेतावनी अनुविभागीय अधिकारी के माध्यम से शासन को दी गई लेकिन शासन द्वारा किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं दिये जाने पर किसानों द्वारा स्थानीय बस स्टेण्ड के समिप धरना दिया गया। इस धरने में डॉक्टर सुनीलम को मुलताई क्षेत्र में स्थापित करने वाले अनिल सोनी, अनिरूद्ध मिश्रा सक्रिय हुए।

इस दौरान देश के प्रसिद्ध चिंतक डॉक्टर सुरेन्द्र मोहन भी मुलताई के किसानी आंदोलन से जुड़े। इस दौरान डॉक्टर सुनीलम एवं मुलताई के क्षेत्रीय किसानों के बीच सम्पर्क बना रहा। खराब फसल हो जाने के कारण क्षेत्र में किसानों के साथ मजदूर वर्ग भी भूखमरी की चपेट में आ गया। ज्ञात हो क्षेत्र की सारी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, और पूर्व में भी किसानों को खराब मौसम एवं गेरूए रोग के कारण हानि उठानी पड़ी थी। फसलों के खराब हो जाने के कारण जहां किसान बिल्कुल खाली हो गया था वहीं मजदूर वर्ग भी बेरोजगार हो गया था। खाली किसान एवं मजदूर वर्ग स्वभाविक रूप से किसान आंदोलन की ओर आकर्षित होने लगे।

किसानों ने शासन को ज्ञापन सौंपकर निर्धारित समय सीमा में किसानों को खराब फसल के मुआवजे की मांग की तथा मांग पूरी न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी। शनै:शनै: समय गुजरता गया किसानों द्वारा शासन को दिया गया समय समाप्त हो गया। इस दौरान कांग्रेस एवं भाजपा के स्थानीय नेताओं ने किसी भी तरह से इन किसानों से सम्पर्क नहीं साधा।

किसानों ने अपनी मांगे मंगवाने के लिए आंदोलन का रूख अख्तीयार किया। तहसील कार्यालय परिसर में एक टेन्ट लगाकर धरना एवं क्रमिक भूख हड़ताल डॉक्टर सुनीलम के नेतृत्व में प्रारंभ की गई। धरना स्थल पर डॉक्टर सुनीलम ने महापंचायत एंव किसान संघर्ष समिति का संयोजन किया। जिसका अध्यक्ष परमंडल के टंटी चौधरी को बनाया गया। धरना स्थल पर महापंचायत अध्यक्ष टंटी चौधरी की अध्यक्षता में सभाएं होने लगी। मुलताई का तहसील कार्यालय धीरे धीरे किसान महापंचायत का सभाग्रह नजर आने लगा। डॉक्टर सुनीलम को किसानों एवं मजदूरों के अभूतपूर्व समर्थन मिलता देख अब कांगेस एवं भाजपा नेता नींद से जागे और धीरे धीरे किसान आंदोलन को अपने नेतृत्व में लेने के प्रयास हेतु किसानों के धरना स्थल पर पहुंचने लगे।

जहां महापंचायत के अध्यक्ष टंटी चौधरी की अनुमति से बोलने की अनुमति तो मिल जाती थी लेकिन धरना स्थल पर बनाए मंच पर स्थान नहीं ले पाते थे। धीरे धीरे मुलताई के स्थानीय नेताओं के साथ जिले के कुछ नेताओं ने भी किसान आंदोलन को अपने नेतृत्व में लेने का भरसक प्रयास किया। लेकिन असफल रहे। इस दौरान लगभग 15 दिन तहसील कार्यालय में चले धरना एवं भूख हड़ताल में दिन भर डॉक्टर सुनीलम इन किसानों के साथ रहते थे एवं रात्री में लगभग 10 से 20 गांवो का दौरा करते रहे। दौरे में डॉक्टर सुनीलम ने मुलताई, पट्टन, आमला ब्लाकों के गांवो में 10 सदस्य किसान संघर्ष समिति का निर्माण किया। किसान संघर्ष समिति का सदस्यता शुल्क किसानों ने 10 रूपये लिया गया। किसानों का आंदोलन पूरे शबाब पर आ गया। क्षेत्र के किसानों को भूखमरी दौर में डॉक्टर सुनीलम द्वारा 5 हजार रूपये एकड़ फसल के मुआवजे का सपना दिखाया जो मिलना असंभव था लेकिन उस समय किसान बिल्कुल खाली एवं बेरोजगार थे आखरी आस डॉक्टर सुनीलम से लगाए बैठे थे कि आंदोलन स्वरूप 5 हजार रूपये एकड़ नहीं तो कुछ ना कुछ सहायता शासन से अवश्य मिल जाएगी। इसी आस के साथ आम किसान एवं मजदूर डॉक्टर सुनीलम से जुड़ गए।

किसान महापंचायत एवं किसान संघर्ष समिति द्वारा जारी किए पर्चे में धरने एवं भूख हड़ताल के पश्चात शासन द्वारा मांगे ना माने जाने पर चक्का जाम बैतूल रैली ले जाकर ज्ञापन सौंपना तथा तहसील कार्यालय परिसर में जाकर ताला लगाना पूर्व निर्धारित था। एकाएक तहसील परिसर में लगे धरना स्थल की विद्युत लाईन काट दी गई। जो कि तत्कालिक अनुविभागीय अधिकारी पहारे ने किसान धरना स्थल पर दी थी।

लाईन काटने के पश्चात किसानों एवं प्रशासन के बीच तनाव की स्थिति बन गई। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार किसानों द्वारा चक्का जाम का कार्यक्रम रखा गया था। जिसमें यह तय किया गया था कि प्रत्येक गांव की किसान संघर्ष समिति समिपस्थ मुख्य मार्ग पर चक्का जाम करेगी। चक्का जाम की शुरूआत निर्धारित दिन से एक दिन पूर्व संध्या काल से ही हो गई थी। ग्राम नरखेड़ के मजदूरों को सिंचाई विभाग के अनुविभागीय अधिकारी द्वारा मजदूरी प्रदान नहीं की गई थी। जिससे आक्रोशित होकर ग्राम नरखेड़ के समिपस्थ ग्रामों के मजदूरों ने एक दिन पूर्व संध्या काल से ही मुलताई अमरावती मार्ग पर चक्का जाम एवं शासकीय वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया था। चक्का जाम के निर्धारित दिन किसानों ने अपने-अपने ग्रामों के समीप मुख्य मार्गों पर चक्का जाम किया। किसान आंदोलन कारियों का पूर्व निर्धारित चक्का जाम पूर्णत: शांति पूर्ण सफल रहा।

प्रशासन ने आक्रमण रूख अपनाते हुए रात्री में धरने पर बैठे किसान आंदोलन कारियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया एवं तहसील परिसर में लगा किसान आंदोलन कारियों का पंडाल उखाड़ दिया। धरना स्थल पर उपस्थित डॉक्टर सुनीलम के प्रमुख साथी अनिरूद्ध मिश्रा को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। किसान आंदोलन कारियों के रात्री में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये जाने एवं तहसील परिसर में लगे धरना स्थल के पंडाल को पुलिस द्वारा उखाड़ दिये जाने की खबर आग की तरह क्षेत्र में फैल गई। पुलिस डॉक्टर सुनीलम को गिरफ्तार करने ग्राम परमंडल पहुंची पर ग्रामीणों के हस्तक्षेप के कारण पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। उसके बाद अज्ञात स्थान से डॉक्टर सुनीलम आंदोलन का संचालन करने लगे। डॉक्टर सुनीलम के कार्यकर्ता मोटर सायकिलों से ग्रामीण अंचलों में बनी अपनी समितियों से सम्पर्क करने निकल गए। दूसरे दिन पूर्व प्रसारित पर्चों के अनुसार बैतूल रैली के रूप में जाकर ज्ञापन देने का कार्यक्रम निर्धारित था।

जिसको असफल करने के लिए प्रशासन ने मुलताई में पहुंचने वाले विभिन्न मार्गों पर पुलिस तैनात कर दी। डॉक्टर सुनीलम ने भी योजना बद्ध तरीके से सभी कार्यकर्ताओं को 10 बजे एक साथ मुलताई पहुंचने की योजना बनाई। डॉक्टर सुनीलम की योजना सफल हुई। प्रात: 10 बजे के लगभग किसान ट्रेक्टरों से मुलताई पहुंचने लगे। मुलताई में आने वाले प्रमुख मार्गों पर पुलिस द्वारा इन किसान आंदोलन कारियों से भरे ट्रेक्टरों को रोकने का प्रयास किया गया लेकिन अत्याधिक तादाद में जमा होने पर सभी रास्तों से पुलिस को हटना पड़ा और प्रात: 11 बजे के लगभग मुलताई में टिड्डी दल के रूप में ट्रेक्टर छा गए। मुलताई किसानों से भरे ट्रेक्टर किसान आंदोलन के समर्थन में नारे लगा रहे थे। ट्रेक्टर की अभूतपूर्व रैली में आंदोलन कारियों के उत्साह में गुणात्मक वृद्धि कर दी। मुलताई-बैतूल के बीच मार्गों से लगे ग्रामों के मजदूर किसानों ने गुजरने वाले माल वाहक ट्रकों पर कब्जा कर लोड ट्रकों के उपर बैठकर बैतूल पहुंचने लगे। किसान आंदोलन कारियों की अभूतपूर्व रैली करीब 600 ट्रेक्टरों के साथ लगभग 25 हजार कार्यकर्ताओं की रैली बैतूल पहुंची।

इस रैली में कुछ ट्रेक्टर दुर्घटना ग्रस्त भी हुए। रैली ने बैतूल पहुंचकर पुलिस ग्राउंउ बैतूल में जिलाध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा। एक दिन पश्चात 12 जनवरी को किसान आंदोलन कारियों का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम तहसील कार्यालय में ताला बंद करने का था। किसान आंदोलन के संबंध में चर्चा करने पत्रकारगण अनुविभागीय अधिकारी पहारे के निवास पर पहुंचे। चर्चा में एसडीएम पहारे ने पत्रकारों से अपील की कि पत्रकार मध्यस्ता कर डॉक्टर सुनीलम से मेरी चर्चा कराए। ताकि तहसील कार्यालय में आगामी ताला बंदी कार्यक्रम को रद्द कराया जा सके। इत्तेफाक से उसी समय डॉक्टर सुनीलम का फोन अनुविभागीय अधिकारी पहारे के निवास पर आया। पत्रकारों के सामने ही sdm पहारे एवं डॉक्टर सुनीलम के बीच चर्चा हुई। जिसमें पहारे ने डॉक्टर सुनीलम से कहा कि वे आंदोलन के संबंध में विस्तृत चर्चा करना चाहते है।

आप मेरे निवास पर आ जाए या आप जहां कहे मै आपसे चर्चा करने आ जाता हूं। इस पर डॉक्टर सुनीलम नेे कहा कि जो भी चर्चा होगी सभी किसान भाईयों के सामने 12 जनवरी को तहसील कार्यालय में होगी। किसान संघर्ष समिति अपने कार्यक्रम के अनुसार 12 जनवरी को तहसील कार्यालय में ताला लगाएंगे। पूर्व में आंदोलन कारियों की सफलता से सचेत प्रशासन ने प्रात:काल से तहसील कार्यालय को छावनी का रूप दे दिया। तहसील कार्यालय को हथियारों सुसज्जित करीब 300 पुलिस कर्मियों ने घेर लिया। लेकिन 12 जनवरी को स्थानिय हाई स्कूल ग्राउंड पर क्रिकेट प्रतियोगिता स्थानीय छबिगृह में कान्वेंट के बच्चों का कार्यक्रम एवं स्थानीय बाजार स्थल पर बहूजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष काशिराम की आमसभा आयोजित थी। जबकि मुलताई में धारा 144 लागु कर दी गई थी। गोलीकांड के पश्चात इन आयोजनों को प्रशासन की असतर्कता के रूप में प्रचारित किया गया। जबकि तत्कालीन अधिकारियों की यह सोच थी कि शायद इन आयोजनों से तहसील कार्यालय की भीड़ बट जाएगी। और स्थिति संभालने में सहायता मिलेगी।

12 जनवरी को प्रात: 11 बजे से तहसील कार्यालय के सामने विभिन्न पगडंडी मार्गों से किसान जमा होने लगे। तहसील कार्यालय छावनी बना हुआ था। लेकिन ठीक उसके सामने लगभग 5 हजार जनता जमा हो चुकी थी। दोपहर काशिराम का आगमन हुआ। अधिकारियों की सोच के मुताबिक भीड़ दो भागों में बट गई। काशिराम राष्ट्रीय किसान नेता था।

इसीलिए सभी उन्हे सुनना चाहते थे। तहसील कार्यालय से आधा किलोमीटर दूर बाजार स्थल पर ही काशीराम की सभा को सुनने आम जनता पहुंचने लगी। अधिकांश स्थानीय व्यक्ति काशीराम की सभा में पहुंच गए। किसान संघर्ष समिति की कट्टर कार्यकर्ता लगभग 2500 तहसील कार्यालय परिसर के सामने रूके रहे। कार्यकर्ता लगातार नारेबाजी कर रहे थे। बहूजन समाज पार्टी के अध्यक्ष काशीराम की सभा प्रारंभ हुई। काशीराम की चलती सभा के बीच में ही डॉक्टर सुनीलम जिंदाबाद, किसान संघर्ष समिति जिंदाबाद के नारे के साथ छिंदवाड़ा की ओर से 10-12 ट्रेक्टर किसानों से भरे हुए गुजरे। काशीराम की सभा से बहुत कम श्रोता सभा छोडकऱ डॉक्टर सुनीलम की रैली के साथ गए। कुछ समय बाद अचानक तहसील परिसर की ओर से धुंआ एवं गोली चलने की आवाजे आने लगी। उस समय काशीराम का उदबोधन चालु था। अचानक हाथ में वायरलेस थामे हुए एक पुलिस अधिकारी मंच पर आया और काशिराम सभा समाप्त कर हेलीकॉप्टर की ओर तेजी से चल पड़े। तब तक तहसील कार्यालय की ओर से गोलियां चलने की आवाजे तेज हो गई थी। जिसके कारण श्रोता सभा छोडकऱ भागने लगे। तहसील परिसर के सामने उपस्थित प्रत्यक्ष दर्शियों से ज्ञात हुआ कि जैसे ही डॉक्टर सुनीलम तहसील कार्यालय पहुंचे अत्याधिक उत्साहित कार्यकर्ता तहसील परिसर में घुस गए। तहसील परिसर में खड़ी फायर ब्रिगेड का ड्रायवर पथराव के कारण मारा गया। भीड़ अनियंत्रित हो तहसील कार्यालय में घुस गई। डॉक्टर सुनीलम ने जीप पर खड़े होकर भीड़ को नियंत्रण करने का प्रयास किया। लेकिन भीड़ अत्याधिक उत्साह में डॉक्टर सुनीलम के नियंत्रण से बाहर हो गई।

उस समय गोलियां चलना प्रारंभ हो गया। भीड़ हॉस्पिटल से होते हुए खेत के रास्ते मासोद रोड, पारेगांव रोड एवं परमंडल की ओर भागने लगी। पुलिसकर्मी अपने साथियों के घायल होने के कारण अत्याधिक आवेश में भीड़ के पिछे गोली चलाते हुए दौड़ रहे थे।

करीब 10 मिनट आंसु गैस के गोले एवं गोलियों की आवाज आती रही। फिर मुलताई में करप्यू की घोषणा कर दी गई। भगदड़ में कई व्यक्ति भाग कर बस स्टेण्ड की दुकानों में शटर बंद कर छिप गए। काशीराम की सभा में उपस्थित पत्रकारों का दल काफी कठनाई एवं स्थानीय पुलिस कर्मियों की मदद से पुलिस स्टेशन पहुंचा। पत्रकारों के वाहन तहसील परिसर के सामने खड़े उन्हे लाने के लिए पुलिस थाने से स्थानीय 4 गार्ड दिये गये। तहसील कार्यालय के समीप अपने वाहनों के पास पहुंचने पर पत्रकारों के रौंगटे खड़े हो गए। तहसील परिसर में 2 एवं सडक़ पर 2 लाशे पड़ी नजर आ रही थी। पत्रकारों के 2 पहिया वाहन सुरक्षित थे, लेकिन बैतूल के पत्रकारों की जीप नदारद थी।

काफी प्रयास के बाद भी जीप को खोजा नहीं जा सका। फिर अंदाजा लगाया गया की शासद पुलिस की गोली से घायलों को ले जाने के लिए किसी ने जीप का उपयोग कर लिया होगा। करप्यू के बाद जीप शायद वापस आ जाए इसी आशा के साथ पत्रकारगण कर्पियु खुलने का इंतजार करने लगे। पूरे मुलताई कस्बे में मौत की खामोशी छा गई। जो जहां था वहीं छुप गया। फिर शाम 7 बजे के करीब पहली बार कर्पियु में ढील दी गई। सभी की जान में जान आई। जनता छुपे हुए स्थानों से बाहर निकलकर घर पहुंची। कुछ कई घंटे दुकानों में बंद रहे तो कुछ ट्रक एवं मोटरों में छुपे रहने के समाचार मिले। छुपे व्यक्तियों ने अपने घर पहुंचने पर पुलिस द्वारा लगातार कई चक्र फायर करने की बात बताई।

जिसमें सैकड़ों लोगों के मारे जाने की आम धारना बनने लगी। सभी ने बहूजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सभा को मुलताई के लिए वरदान माना। उक्त सभा नहीं होती तो मुलताई के स्थानीय बाशिंदे पुलिस की गोलियों के शिकार होते। सैकड़ो लोगों के मारे जाने की खबर के साथ तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी। जिसमें पुलिस वाहनों द्वारा पुलिस की गोली से मारे गए शवों को सापना डेम में पत्थर बांधकर फेंकने एवं स्थानीय सिंचाई विभाग के ट्रक से शवों को स्थानीय रेल्वे स्टेशन ले जाकर किसी सुपर फास्ट ट्रेन से भेजने की चर्चा जोर पकडऩे लगी। बाद में पता लगा कि गोलीकांड की घटना के पश्चात भागे किसानों ने अपने-अपने ग्रामों के समीप मुख्य मार्गों पर चक्का जाम कर दिया। जिसके कारण घायलों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रशासन ने सुपर फास्ट ट्रेन को रोककर उसकी एक बोगी खाली कर घायलों को बैतूल भेजा गया था। दूसरे दिन प्रात: काल से मुलताई कस्बा रैपिट एक्शन फोर्स के सायरन से गूंज उठा। सभी समाचार पत्र मुलताई गोलिकांड की घटना को समाचार पत्र की मुख्य न्युज बनाए हुए थे।

मुलताई नगरी में प्रमुख प्रिंट मीडिया के साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया भी पहुंच गई। घटना के दूसरे दिन पत्रकारों एवं नागरिकों को कर्प्यू पास जारी किये गये। मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि मंडल के रूप में सुभाष यादव एवं चरणदास महंत पधारे एवं घटना स्थल का दौरा किया। पुलिस बर्बरता को स्वीकारा, चर्चा में सुभाष यादव ने कहा कि वे डॅाक्टर सुनीलम से मिलना चाहते है। वे इस समय कहा है, क्या कोई मुझे उनसे मिलवा सकता है। उस समय किसी को भी डॉक्टर सुनीलम की गिरफ्तारी की जानकारी नहीं थी। चर्चा के दौरान भोपाल से पधारे पत्रकार आनंद पांडे एवं सुभाष यादव के बीच बहस हो गई।

और पत्रकारों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया। यादव द्वार डॉक्टर सुनीलम के विषय में उस समय पूछा जाना की डॉक्टर सुनीलम कहा है आज कई प्रश्रों को जन्म देता है। पुलिस द्वारा डॉक्टर सुनीलम की गिरफ्तारी की जानकारी मध्यप्रदेश के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री से भी छिपाई गई थी। घटना के दूसरे दिन ही लोकसभा चुनाव के संबंध में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सभा छिंदवाड़ा में थी। सभी को उम्मीद थी कि भाजपा नेता मुलताई आएंगे लेकिन वाजपेयी छिंदवाड़ा से ही वापस चले गए। छिंदवाड़ा सभा में मुलताई गोलिकांड के लिए मध्यप्रदेश सरकार को जमकर लताड़ा। उसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मुलताई पधारे। उसी दिन प्रतिपक्ष भाजपा नेता विक्रम वर्मा भी मुलताई पहुंचे और घटना स्थल का निरिक्षण किया। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बैठक में सभी नागरिकों, पत्रकारों एवं नेताओं को सुना। बैठक में तत्कालीन विधायक गोली चालान में किसानों के मारे जाने के कारण तत्कालीन विधायक रोए।

अनायास ही शाम 3 बजे के करीब स्थानीय हाई स्कूल परिसर में अपने एक सहयोगी एवं टी.वी. टीम के साथ जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शरद यादव पहुंचे। जैसे ही उनके आने की खबर हाई स्कूल परिसर में फैली सभी उपस्थित व्यक्ति शरद यादव के पास पहुंच गए। उसके समीप ही कक्ष में दिग्विजय सिंह की आम नागरिकों के साथ बैठक चल रही थी। शरद यादव ने बताया कि उन्हे घटना की जानकारी बड़ोदा में मिली। जहां वे पार्टी के प्रचार में गए हुए थे। डॉक्टर सुनीलम की धर्म पत्नी द्वारा फोन पर जानकारी दी कि डॉक्टर सुनीलम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, और कभी भी गोली मारकर हत्या कर सकती है। इसलिए में डॉक्टर सुनीलम से मिलने चार्टर प्लेन करके आया हूं।

उपस्थित पुलिस अधिकारियों से डॉक्टर सुनीलम से मिलवाने के लिए कहा। पर सभी पुलिस अधिकारी एक सुर में डॉक्टर सुनीलम के विषय में अनभिज्ञता प्रकट कर रहे थे। शरद यादव ने कहा कि मेरे पास समय नहीं है। मुझे जल्दी डॉक्टर सुनीलम से मिलवाओं नहीं तो ठीक बात नही होगी। लेकिन पुलिस अधिकारियों ने डॉक्टर सुनीलम की जानकारी के बारे में अनभिज्ञता प्रकट की। फिर शरद यादव ने मुलताई जेल जाना चाहा। जिस पर संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने विधिवत आवेदन देने के लिए कहा। शरद यादव के साथ आए वकील ने तुरंत आवेदन दिया और शरद यादव मुलताई जेल पहुंचे। उनके साथ मुलताई के कुछ पत्रकार भी थे जिसमे में भी शामिल था। जेल पहुंचने पर शरद यादव ने साथ आए पत्रकारों एवं अन्य को जेलर ने जेल का भ्रमण करवाया। जहां जेल में बंद किसान संघर्ष समिति के कार्यकर्ता की हौसला अफजाई की।

जेलर ने बताया कि एक अन्य बैरक में अनिरूद्ध मिश्रा व कुछ साथियों को रखा गया है। शरद यादव के साथ वहां पहुंचने पर अनिद्ध मिश्रा ने बताया कि पुलिस द्वारा टेन्ट उखाडकऱ फेंकने के साथ ही हमे गिरफ्तार कर मुलताई पुलिस स्टेशन लेकर आए जहां हमे बहुत मारा और हमारे सामने तहसील कार्यालय के ताला बंदी के समय डॉक्टर सुनीलम को गोली मारने की योजना बनाने लगे। फिर हमे जेल भेज दिया। उस दिन से मैं एवं कुछ साथी आमरण अनशन पर है। अनिरूद्ध मिश्रा ने बताया कि शायद पुलिस ने डॉक्टर सुनीलम को गोली मार दी होगी। इस जेल में तो डॉक्टर सुनीलम नहीं है। जेल से बाहर निकलने पर जेल के सामने तब तक दिग्विजय सिंह की सभा छोडकऱ अधिकांश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एवं अन्य अधिकारी जेल पहुंच चुके थे।

शरद यादव ने पुन: पुलिस अधिकारी से कहा कि डॉक्टर सुनीलम को गोली मार दी या जिंदा है है तो कहा है, बता दो नहीं तो ठीक बात नहीं होगी। तब एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने शरद यादव को बताया कि डॉक्टर सुनीलम जिंदा है, उन्हे क्षेत्र में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से बैतूल के फॉरेस्ट विभाग के रेस्ट हाउस में रखा गया है। शरद यादव ने बैतूल जाकर डॉक्टर सुनीलम से मिलने की इच्छा जाहिर की। उस पर शरद यादव के पायलेट ने समय अभाव की बात कही। जब उपस्थितजनों से शरद यादव ने कहा कि डॉक्टर सुनीलम तक खबर पहुंचा दे की मैं उनसे मिलने आया था, और उन्होने उस समय के तत्कालीन लोकसभा चुनाव में जनता दल के चुनावी मुद्दे में मुलताई गोलीकांड को शामिल करने की घोषणा की।

उसके बाद सुभाष यादव मुलताई आए और मृतक परिवारों को मुआवजे के चैक प्रदान किये और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही का आश्वासन दिया। इस दौरान मीडिया और सभी पार्टी के नेताओं के दौरे लगातार चलते रहे। धीरे धीरे घटनाओं पर से पर्दे उठने लगे। सैकड़ो लोगों के मारे जाने की आशंका झूठी साबित हुई। उस समय करीब 21 मौतों की पुष्ठि पुलिस ने की। बाद में घायलों की मौत से यह आकड़ा 24 मौतों तक पहुंच गया। पूरे क्षेत्र में पत्रकारों द्वारा पर्चे जारी कर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे करने पर पता लगा की कोई भी लापता नहीं है, लेकिन ससुन्द्रा के पास एक किसान संघर्ष समिति के नेता के लापता होने का पता चला। लेकिन बाद में पता लगा कि वह पुलिस गिरफ्तारी से बचने के लिए किसी रिश्तेदार के यहा चले गए थे।


मुलताई का किसान आंदोलन आधुनिक युग में प्रशासनिक व्यवस्था पर एक प्रश्र चिन्ह लगा गया। और एक सबक राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए छोड़ गया कि जब-जब अन्याय अत्याचार एक सीमा से ज्यादा बढ़ेगा तब-तब आंदोलन होंगे। मुलताई के किसान आंदोलन से प्रशासन ने सबक ले लेना चाहिए, जिससे किसानों को बार-बार आंदोलन करने के लिए बाध्य ना होना पड़े, और आजाद हिन्दूस्तान की जमीन पर कही भी गोली चालन की स्थिति निर्मित न हो।
लेकिन प्रशासनिक अधिकारी है कि किसानों की भावनाओं को समझने के बदले उनके संवेदनशील मामलों को गंभीरता से नहीं लेते है। जिसके कारण बार बार किसानों को आंदोलन की राह पर चलना पड़ता है

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