जिसके गले में रुद्राक्ष होता है उसका घर पर रोज नर्मदा स्नान होता है शास्त्री
बैतूल। खेडी सांवलीगढ़ । माँशीतलामंदिरकेस्थापनादिवस परआयोजितसप्तदिवसियश्रीमद नर्मदापुराणकेपंचम दिवस कथा वाचकपंडित विजय शास्त्रीने माँ नर्मदा कथा के दौरान कहा कि मानव जीवन में रुद्राक्ष का बड़ाही महत्व है।उन्होंने कहा कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिवकेनेत्र से निकले अश्रुओं से हुई थी रुद्राक्ष जिस भी मनुष्य केगले में होता है उसका प्रतिदिन नर्मदा स्नान घर बैठे ही होता हैऔर अंतकाल में वह रुद्राक्ष धारण किया हुआ व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष भोले नाथ के परम धाम को प्राप्त होता है।उन्होंने कहा कि कलिकाल में नाम का बड़ा महत्व हैभगवान से बड़ा महत्व भगवान के नामका है।अजामिल ने कभी भगवान की भक्ति नही की लेकिन किसी संत के कहने पर पुत्र का नाम नारायण रख लिया जब अजामिल बूढ़ा होकर बीमार हो गया अंत समय में उसने अपने पुत्र नारायण का नाम लेकर पुकारा वह अजामिल संसार सागर से तर गया ऐसे है भगवान के नाम की महिमा उन्होंने माँ नर्मदा के तट पर स्थित तीर्थो की महिमा भी बताई और कहा कि माँ नर्मदा के तट हिरण्य फाल है।जहाँ असुर हिरण्याक्ष ने तपस्या की चक्र तीर्थ रूद्र मुख तीर्थ उलूकी तीर्थ जहाँ माँ नर्मदा ने अपने भक्त उल्लू का उद्धार किया।
कथा में उन्होंने कहा कि माँ नर्मदा के तट गुफा में उल्लू रहता था जो प्रतिदिन सुबह नर्मदा में स्नान करता था यह उल्लू का रोजाना नर्मदा में स्नान करना कुछ कोऔ को नही भाया एक दिन कोऔ ने उल्लू के लिए साजिश रची और जब वह स्नान कर उस गुफा में चला गया तो कोऔ ने गुफा के द्वार पर चोंच से लकड़ियों इकठ्ठा कर द्वार बंद कर दिया और सुबह जब उल्लू स्नान के लिए जावे उसके पूर्व नर्मदा नदी के तट जल रही एक चिता से जलती हुई लकड़ी चोंच में पकड़कर लाई और द्वार पर रखे लकड़ियों में लगा दी जब उल्लू उसके समय पर स्नान के लिए उस द्वार से जाने लगा तो उसके पंख जलगये और उसका शरीर कई दिन तक गुफा के द्वार पर हो पड़ा रहा। और वह उसका प्रणान्त हो गया गुफा के द्वार पर पड़े उसके शरीर को कुछ जीवो ने नोच नोच कर भक्षण कर लिया और उसकी अस्थियां उन जीवो से नर्मदा में चली गई उस उल्लू योनि में जन्मे उल्लू का उस योनि से उद्धार हो गया जब से माँ नर्मदा के तट उस तीर्थ का नाम उलूक तीर्थ पड़ा कथा में आस पास गावो से बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित होकर कथा सुनने आ रहे है।