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मुलताई में आया था दुनिया का तीव्रतम गति का चक्रवात 5 की हवा में उड़ने से हुई थी मौत ,यादों के झरोखों से 17 फरवरी बलेगांव चक्रवात की बरसी पर विशेष

गगनदीप खेरे की यादों के झरोखों से


मुलताई, ताप्ती समन्वय। 17 फरवरी 2003 इस दिन बैतुल जिले के मुलताई तहसील के बलेगांव में दुनिया का तीव्रतम गति का चक्रवात आया था। जिसमें हवा में उड़ने के कारण 5 मौते हो गई थी। 17 फरवरी 2024 को 21 साल बाद यादों के झरोखों से पाठकों को मुलताई तहसील के बलेगांव ग्राम में आये चक्रवात की घटना से रूबरू करा रहा हूं।
मुलताई में शाम 4:30 बजे के आसपास दिन में ही शाम की तरह अधियारा होने लगा। तेज आंधिया एवं हवा के तेज झोखों के साथ मोटी बुंदो वाली तेज बारीश हुई जो लगभग 30 मिनट चली। जिसमें नगर के कई पेड़ टूट गये। उसके बाद बारीश थम गई।
यह वह दौर था जब मध्यप्रदेश में जम कर विद्युत कटौती हुआ करती थी। जिसके चलते घर-घर में इन्वेटर लगे हुए थे। मौसम बिगड़ने के कारण लम्बी विद्युत कटौती का आसार था। मैं प्रेस की बैटरी लो होने के कारण दूसरी बैटरी लेने बस स्टैंड गया जहां जानकारी प्राप्त हुई की पुलिस प्रशासन बैटरी की दुकानों से कुछ चार्ज वाली बैटरिया ले कर किसी ग्राम में बड़ी घटना घटने के कारण ले कर गये है। जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करने पर जानकारी मिली की मासोद के पास के ग्राम बलेगांव में चक्रवात आया है। जिसके कारण विद्युत के पोल गिर गये है। जिसके कारण पुरे क्षेत्र में लाइन बंद हो गई है, और पुरे जिले के प्रशासनिक अधिकारियों का मुवमेंट बलेगांव की ओर हो रहा है।
आनन फानन में अपने सहयोगी रवि पाटिल के साथ शाम का अंधेरा होते-होते निकल पड़ा। इस दौरान बैतुल के कुछ पत्रकार साथी भी मुलताई पहुंच गये और हम साथ में बलेगांव की ओर निकल पड़े। हमे रास्ता पता करने पर ज्ञात हुआ कि बलेगांव बिरूल बाजार एवं मासोद दोनों रास्तों से जाया जा सकता है। बिरूल बाजार का रास्ता खराब था इसलिए हमने मासोद की ओर से बलेगावं जाने का निर्णय लिया और रात होते-होते हम मासोद पहुंच गये। जहां से आगे बलेगांव की ओर बढ़े। इस दौरान हमने रास्ते में देखा रायआमला, तायखेड़ा के पास के सारे विद्युत पोल गिर गये थे। सड़को के इर्द गिर्द के सारे बोर्ड टूट गये थे, कई झाड़ गिर गये थे।
मासोद से आगे बलेगावं की ओर जाने पर बारीश के कारण हमारी मोटर साइकिले किचड़ में फस गई। जिसके कारण फसी मोटर सायकिलों को वहीं छोड़कर हम किचड़ में अन्धेरे में आगे बढ़े। इसी दौरान मासोद की ओर से एक चौपहिया वाहन आते दिखा। जिस की मदद से 8 बजे रात्री के लगभग हम बलेगावं पहुंचे।
जहां पहुंचते ही हमारे रोंगटे खड़े हो गये। पूरे गांव में मौत के सन्नाटे के बीच रोने की आवाज गुंज रही थी। गांव के सारे कच्चे मकान तहस नहस हो गये थे। स्कूल की छत गिर गई थी। पूरे गावं में साबुत बचा था तो मात्र गांव के बीचो बीच बना मंदिर। जिसके सामने 5 लाशे रखी गई थी। जिसमें छोटी बच्ची की लाश भी शामिल थी।
जानकारी प्राप्त करने पर पता चला की बलेगांव में शाम 4:45 मिनट पर तेज हवा की आवाज एवं अंधियारा छाने लगा और तेज बारीश के साथ दुनिया की तीव्रतम गति का चक्रवात आया। जिसमें बैलगाड़ी के चक्कों सहित कई घरों को हवा में उड़ा दिया। जिसके कारण छोटी बच्ची सहित 5 व्यक्तियों की हवा में उड़ने के कारण मौत हो गई थी।
उस समय मोबाईल नहीं थे लेकिन डब्ल्यू.एल.एल. हुआ करते थे। जिसका कवरेज नहीं मिल रहा था। हम तत्कालीन सरपंच रविन्द्र पाटिल जिसका घर लेंटर का था वहा पहुंचे। उसकी छत से फ्रेकवेंसी मिल रही थी जहा से हमने घटना का कवरेज किया। गांव के आसपास अत्यधिक किचड़ होने एवं हमारे दो पहिया वाहन में किचड़ में फंसे होने के कारण हमने उसी छत पर रात गुजारने का फैसला किया।
और एक ऐसी रात उस छत पर गुजारी जिसे कभी भूल नहीं सकते। उसी घर में बच्ची की मौत हुई थी। जिसके कारण रात भर रोने की आवाजे आ रही थी। वहीं मात्र धोती बिछाकर हमने तेज ठण्ड के बीच रात गुजारी। जिसका अहसास कागज कलम से बयां करना मुश्किल है। वैसे भी उस घर में रात गुजारना मुश्किल होता है, जहां लाश सुबह का इन्तजार करती है।
स्कूल की छूट्टी कर दी नहीं तो कई बच्चे मरते
जानकारी प्राप्त हुई कि जैसे ही गांव में अंधियारा छाने लगा और तेज बारीश के आसार हुए गावं के एकमात्र स्कूल की 4:30 बजे छूट्टी कर दी। जिससे छात्र घर पहुंच सके। 4:45 पर चक्रवात आया और स्कूल को उड़ा दिया। जिसके कारण पूरा स्कूल ढह गया। छत गिर गई, यदि स्कूल की छूट्टी नहीं होती तो कई बच्चे मारे जाते।
बलेगांव में मात्र मंदिर बचा
17 फरवरी 2003 को आये चक्रवात में गांव के बीच बना मंदिर ही उसके पीरामिड आकार के कारण गिरने से बच सका। जबकि चक्रवात उसके उपर जम कर घुमा। जिससे उसकी ईंटे तक उड़ने लगी थी, लेकिन पीरामिड आकार होने के कारण मंदिर नहीं गिरा।
चन्दोरा बांध फूटने से बहे, टीले पर बसे चक्रवात में फिर उजड़े
बलेगांव त्रासदी में कई घर ऐसे शामिल थे जो 1992 में चन्दोरा बांध फूटने के कारण पीड़ित हुये थे और उनके खेत खलिहान बह गये थे। जिसके कारण उंचे टीले पर बलेगांव बसाया जहां चक्रवात से पीड़ित हो गये और एक बार फिर उजड़ गये।
मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पहुंचे बलेगांव
दूसरे दिन कलेक्टर रजनीकांत गुप्ता प्रशासनिक अमले के साथ बलेगांव पहुंचे। प्रशासनिक व्यवस्था को संभाला, तीसरे दिन तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं तात्कालीन नेता प्रतिपक्ष बाबुलाल गौर हेलीकॉप्टर से बलेगांव पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया। पीड़ित परिवारों को मुआवजा राशि वितरित की। इस दौरान मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुलताई विधायक डॉ.सुनिलम से चर्चा की और पूछा की आप प्रशासनिक व्यवस्था से संतुष्ट हो या नहीं जिस पर सुनिलम ने सहमति व्यक्त की।
मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह एवं पत्रकारों में हुई जमकर बहस
बलेगांव के निरिक्षण के दौरान एक सकरे मकान में भीड़ होने के कारण मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नाराज हो गये और पत्रकारों को क्यों एन्ट्री दी यह कहा। जिस पर तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं पत्रकारों के बीच तीखी बहस हुई। बीच बचाव हेतु बैतुल के तात्कालीन जिला जनसम्पर्क अधिकारी राकेश पांडे पहुंचे और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अवगत कराया कि ग्राम निरिक्षक हेतु पत्रकारो को आमंत्रित किया गया है।
स्वामी प्रज्ञानंद पहुंचे बलेगांव, ग्रामीणो को बांटी सहायता सामग्री
उस समय मुलताई में स्वामी प्रज्ञानंद जी यज्ञ हेतु पधारे थे। घटना की जानकारी मिलने पर तत्काल बलेगांव पहुंचे और ग्रामीणों को सहायता सामग्री वितरित की।
बलेगांव का नाम दिग्विजय ग्राम रखने जिला पंचायत में हुआ प्रस्ताव पारित
बलेगावं के बार-बार बला में फंसने के कारण कलेक्टर के रजनीकांत गुप्ता के सुझाव पर पंचायत ने बलेगांव का नाम दिग्विजय ग्राम रखने का प्रस्ताव जिला पंचायत बैतूल भेजा। जो पास होने वाला था, लेकिन 2005 में कांग्रेस की सरकार जाने एवं भाजपा की उमा भारती सरकार बैठने के कारण हो न सका।

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